

देश में प्रचलित टू फिंगर टेस्ट से बलात्कार पीड़ित महिला की वजाइना के लचीलेपन की जांच की जाती है। अंदर प्रवेश की गई उंगलियों की संख्या से डॉक्टर अपनी राय देता है कि 'महिला सक्रिय सेक्स लाइफ' में है या नहीं।
किसी पर बलात्कार का आरोप लगा देना, उसे सजा दिलाने के लिए काफी नहीं है। बलात्कार हुआ है, यह सिद्ध करना पड़ता है और इसके लिए डॉक्टर टू फिंगर टेस्ट करते हैं।
यह एक बेहद विवादास्पद परीक्षण है, जिसके तहत महिला की योनी में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है। यह भी जांचा जाता है कि दुष्कर्म की शिकार महिला संभोग की आदी है या नहीं।
कई देशों में इसे वर्जिनिटी टेस्ट भी कहा जाता है। इसके जरिए महिला के कौमार्य की जांच की जाती है। डॉक्टर उंगलियों के ही जरिए यह पता लगाते हैं कि हायमन यानि यौन झिल्ली मौजूद है या नहीं।
इसके अलावा योनि के लचीलेपन से यह पता लगाया जाता है कि संभोग जबरन हुआ या फिर महिला की मर्जी से। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस परीक्षण को बेबुनियाद घोषित कर इसे रोकने की मांग कर चुका है।
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भारत में 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट को बलात्कार पीड़िता के अधिकारों का हनन और मानसिक पीड़ा देने वाला बताते हुए खारिज कर दिया। अदालत का कहना था कि सरकार को इस तरह के परीक्षण को खत्म कर कोई दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।
इंडोनेशिया में पुलिस में भर्ती के लिए महिलाओं पर यह टेस्ट किया जाता है। मानवधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसकी निंदा करते हुए इसे चिंताजनक बताया। दक्षिण एशियाई देशों के अलावा मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में भी यह टेस्ट किया जाता है।
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