अंतरिक्ष अनुसंधान के
क्षेत्र में भारत ने नायाब उपलब्धि हासिल की है। भारतीय अनुसंधान संस्थान
(इसरो) का मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी मंगलयान सुबह 8 बजे करीब मंगल की कक्षा
में प्रवेश कर गया। यह उपलब्धि हासिल करने के बाद भारत दुनिया में पहला
ऐसा देश बन गया, जिसने अपने पहले ही प्रयास में यह सफलता हासिल की है।
एशिया से कोई भी देश यह सफलता हासिल नहीं कर सका है। चीन और जापान के अब तक
प्रयास विफल रहे हैं, जबकि अमेरिका को मंगल तक पहुंचने के लिए सात प्रयास
करने पड़े थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और मावेन की टीम ने भारतीय
यान के मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए इसरो को बधाई दी है।
गौरतलब है कि 450 करोड़ रुपये की लागत वाला एमओएम बहुत कम खर्च वाला मिशन है। नासा के मंगल यान मावेन की लागत का यह दसवां हिस्सा है।
सुबह 7 बज कर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम) यान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मंगलयान को मंगल की कक्षा खींच सके, इसके लिए यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड की गई और फिर यान में डाले गए कमांड से मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन की प्रक्रिया संपन्न हुई। यह यान सोमवार को मंगल के बेहद करीब पहुंच गया था। जिस समय एमओएम कक्षा में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में करीब 12 मिनट 28 सेकंड का समय लगा। ये संकेत नासा के कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशनों ने ग्रहण किए और आंकड़े रीयल टाइम पर यहां इसरो स्टेशन भेजे गए। अंतिम पलों में सफलता का पहला संकेत तब मिला जब इसरो ने घोषणा की कि भारतीय मंगल ऑर्बिटर के इंजनों के प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है।
एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था, वहीं दूसरी ओर इसरो के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने नरेंद्र ने कहा कि मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे। खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी।Sorce Navbharattimes
गौरतलब है कि 450 करोड़ रुपये की लागत वाला एमओएम बहुत कम खर्च वाला मिशन है। नासा के मंगल यान मावेन की लागत का यह दसवां हिस्सा है।
सुबह 7 बज कर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम) यान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मंगलयान को मंगल की कक्षा खींच सके, इसके लिए यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड की गई और फिर यान में डाले गए कमांड से मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन की प्रक्रिया संपन्न हुई। यह यान सोमवार को मंगल के बेहद करीब पहुंच गया था। जिस समय एमओएम कक्षा में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में करीब 12 मिनट 28 सेकंड का समय लगा। ये संकेत नासा के कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशनों ने ग्रहण किए और आंकड़े रीयल टाइम पर यहां इसरो स्टेशन भेजे गए। अंतिम पलों में सफलता का पहला संकेत तब मिला जब इसरो ने घोषणा की कि भारतीय मंगल ऑर्बिटर के इंजनों के प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है।
एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था, वहीं दूसरी ओर इसरो के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने नरेंद्र ने कहा कि मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे। खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी।Sorce Navbharattimes


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