🌿 देवशयनी एकादशी 2025 – महत्व, कथा, व्रत विधि और विशेष जानकारी
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इसे आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है — यानी अगले चार महीने का आध्यात्मिक काल।
🌼 देवशयनी एकादशी का महत्व
- इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं।
- चार महीने का चातुर्मास शुरू होता है।
- मांगलिक कार्य वर्जित
- इस व्रत से मोक्ष और पापों से मुक्ति मिलती है।
📜 देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा
एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा — "हे माधव! इस एकादशी का क्या महत्व है?"
श्रीकृष्ण बोले — "यह पद्मा एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु शेषनाग पर क्षीरसागर में शयन करते हैं और चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी को जागते हैं।"
इन महीनों में भक्त उपवास, जप, तप और भक्ति में लीन रहते हैं।
🙏 व्रत विधि
- प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की पूजा करें – तुलसी, पीले फूल, धूप, दीप अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- दिनभर उपवास रखें – निर्जल या फलाहार।
- रात्रि जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन द्वादशी को पारण करें और ब्राह्मण को भोजन व दान दें।
🌿 तुलसी का विशेष महत्व
इसे तुलसी लगाने वाली एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि आज के दिन तुलसी रोपण करने से भगवान विष्णु व लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है।
📍 पंढरपुर यात्रा (महाराष्ट्र)
इस दिन महाराष्ट्र के पंढरपुर में भगवान विट्ठल के दर्शन हेतु लाखों भक्त पदयात्रा करते हैं।
🔱 सारांश
"जो श्रद्धा और नियम से देवशयनी एकादशी का व्रत करता है, वह विष्णु लोक को प्राप्त होता है। यह आत्मशुद्धि का पर्व है।"
🪔 देवशयनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ! हरि ओम् 🙏
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