
कानून लोगों को उनके जुर्म के अनुसार सज़ा सुनाता है. हमारे देश में मौत की सज़ा सबसे बड़ी सज़ा मानी जाती है. कई लोग इस सज़ा का विरोध भी करते रहे हैं. पर बात ये नहीं है कि ये सज़ा सही है या गलत?
हम आज बात कर रहे हैं फांसी की सज़ा से जुड़ी कुछ बातों की. फांसी की सज़ा होते, हम सबने बस बॉलीवुड की फिल्मों में ही देखा होगा. आपने देखा होगा कि फांसी की सज़ा होते वक़्त वहां गिनती के लोग ही मौजूद होते हैं. उन लोगों में एक तो फांसी देने वाला ज़ल्लाद होता है, कैदी की स्वास्थ्य जांच करने वाला एक डॉक्टर होता है, एक न्यायाधीश या उनके द्वारा भेजा गया कोई प्रतिनिधि और पुलिस के कुछ अधिकारी होते हैं.

1. प्रशासनिक कारण:
जेल प्रशासन के लिए फांसी एक बड़ा काम होता है. इसलिए इसको सुबह ही निपटा
दिया जाता है, ताकी फिर इसकी वजह से दिन के दूसरे काम प्रभावित ना हों.फांसी के पहले और बाद में कई तरह की प्रक्रियाएं पूरी करनी पड़ती हैं,
जैसे मेडिकल टेस्ट, कई रजिस्टरों में एंट्री और कई जगह नोट्स देने होते
हैं. इसके बाद लाश को उसको परिवार वालों को भी सुपुर्द करना होता है. ये भी एक कारण है फांसी सुबह दिए जाने का.
2. नैतिक कारण:
ऐसा माना जाता है कि फांसी की सज़ा जिसको सुनाई गयी हो, उसको पूरा दिन
इंतज़ार नहीं कराना चाहिए, इससे उसके दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. चूंकि उसको
मौत की सज़ा दी गयी फिर उसके दिमाग पर प्रभाव क्यों डालना? इसलिए उसे सुबह
उठाया जाता है, फिर उसे दैनिक दिनचर्या से निर्वृत होकर फांसी के लिए ले
जाया जाता है.इसका एक कारण ये भी है कि उसके परिवार वालों को इतना समय दे दिया जाए कि वो आराम से उसका अंतिम संस्कार कर दें.
3. सामाजिक कारण:
किसी आदमी को फांसी देना समाज के लिए एक बड़ी ख़बर होती है. इसका समाज में
गलत प्रभाव न हो और समाज में किसी भी प्रकार की अनिष्ट होने की सम्भावना को
दबाने के लिए सुबह ही फांसी दे दी जाती है.
मीडिया और जनता इस वक़्त उतनी सक्रिय नहीं होती और ये समय काफी शांत होता
है, जिससे कैदी की मानसिक हालत भी कुछ हद तक तनावमुक्त रहता है.
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